गोर बंजारा संस्कृती.. पुजाविधीयां Gor Banjara culture worship method ' samnak'

गोर बंजारा :- पुजाविधीयां

    .... ..समनक....


      गोर समाज आदिम काल से ही प्रकृति पुजक रहा है। जो भी उत्सव, त्यौहार तांडा मनाता है, वह प्रकृति के आगे नतमस्तक होकर ही। पुरे विश्व में गोर समाज सप्तदेवीयो की आराधना करता है जो मातृत्व के महत्व को उजागर करता है।

दिपावली के बाद " लदेणी" पर निकला तांडा बरसात में एक निश्चित स्थान देखकर रुक जाता है। अगले चार-पांच माह के लिए। एक दुसरे के आसपास बहुत से तांडे भी अपना डेरा डाल देते हैं। गोर समाज वर्षा के शुरुआती दिनों में अपने समुदाय और जानवरों के स्वस्थ एवं सुदृढ़ जीवन के लिए देवी की आराधना करता है। 

यह विधि कहीं" सितला देवी" तो कहीं " समनक" जो मऱ्यामा देवी के नाम से जाना जाता है। 

गोर बंजारा संस्कृती " समनक "

" समनक"

          विधी कब और कहां आयोजित कि जाए यह तांडा नायक, कारभारी एवं अन्य डायेसाणे बैठकर ठहराते हैं। देवियों के पुजाविधी के लिए गोर मंगलवार को ही उचित मानते हैं। रिमझिम बारिश, चारों ओर फैली हरियाली और तांडे के बाहर एकठ्ठा गोर । गंतव्य स्थान पर " चोको " गोर बंजारों का पवित्र यंत्र नायक तथा बुजुर्ग व्यक्ती द्वारा जमिन पर निकाला जाता है। जिसके उपर पानी से भरा लोटा और उसमें निम की पत्तीयां रखी जाती है।


 " चोको" के सामने बली के लिए लाया बकरा खड़ा किया जाता है। सभी लोग खडे होकर बिनती करते हैं     

 ... ल याडी..ल.. 

बकरेने (धडधडी) पुरा शरिर हिलाया तो मानो देवी ने मान्यता दी है। बकरे का सर काटकर प्रसाद के रुप में " चोको" के सामने रखा जाता है।

   बकरे के मांस को उबालकर " नारेजा" नाम का व्यंजन बनाया जाता है। " नारेजा" देवी के नाम से अर्पण करते हुये तांडा नायक सबको आमंत्रित करता है...

      ....आवो भोग लगायेन....

सब संमती देते है। बुजुर्ग, जाणत्या देवी की " आरदास" करता है।


जै जै मऱ्यामा...

याडी सगळती..

गोरुर मावली याडी 

जत समरु ओत आढणं आणो

दि पोरो रातेर , चार पोरो दनेर(दाडेर) करणो....याडी

.........................

काळेमातेर मनक्या छा..

पगेपगेम चुकाचा..........

........

इ भोग तार देवळेम पुस्त कर....


सबको नारेजा-प्रसाद बांटा जाता है। और बचे हुए मांस को समसमान (भागा ) हिस्से में बांट दिया था है। तांडा, जानवर को हर संकट का सामना करने के लिये सजग बनानेकी यह एक विधा.......


हजारों साल से चली आ रही यह परंपरा आज भी गोर बंजारा समाज में जीवित है। बदलती दुनिया के साथ गोर बंजारा भी बदल चुका है। लेकिन अपनी धरोहर...धाटी... को वह आज भी नहीं भुला।

जय गोर‌.....

किशोर आत्माराम नायक

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फोटो एवं वर्णन लोकगाथाओ पर आधारित

https://gorbanjarasanskruti.blogspot.com/2023/04/blog-post_6.html

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